जगी है नित नित ये आँखे रातों को विचलित-विचलन-विक्षिप्त मन भी कई बार हुआ, ढ़ाल-ताल-सेतु बना हौसलों को याद किया पुरानी उपलब्धि को फिर उठना सम्भव हुआ, देखा नहीं मेरे पैर के छालों व संघर्ष को सम्मुख आ उसने किस्मत का दिया समझ लिया, मेरे सपनों का मिज़ाज सिर्फ़ मैं ही तो जानता हूँ,तूने तो बिन हाड़मांस की जुबां से कह दिया। #challengeno43 #the_speed_of_motivation #collabwithtsom 👉 कॉमेंट बॉक्स में 55555 लिखें ! 👉 चार पंक्तियों के साथ collab करें ! 👉 समय सीमा 28 /09/2020 सुबह 10 बजे तक रहेगी !