गूँज उठी खुशी की लहर अँगना में,जब पहली बार बिटिया की पुकार सुनी, देख ज़माने के रंग ढंग बैठ जाता पिता का दिल,मां ने न जाने क्या सोच बुनी, पिता ने ठाना पढ़ा लिखा अफसर बना दूँगा,कभी न किसी के आगे झुकने दूँगा, चलो एक अभियान चलाए,दहेज प्रथा का अंत कराये, किसी को न दहेज दूँगा, समय परिवर्तनशील,देता जमाना मिशाल हैं,मैं दहेज पर कुठाराघात करूँगा, नाज़ो से पली बिटिया मेरी बिन दहेज़ मान सम्मान से आज विदाई करूँगा, छुपे बैठे सफेदपोशों की आड़ में दहेज लेनदारों का आज पर्दाफ़ाश करूँगा, शिक्षित लाडलो को करो कभी न किसी की आस में जीना अभियान चलाऊंगा, करते जो अत्याचार चंद पैसों के लिए,जिन्दा जला देते हैं ममत्व की मूरत को, होगा न ये बर्दाश्त मुझसे मैं अंतिम सांस तक न्याय की मूर्ति के आगे ले जाऊंगा, सुनता हूँ जब भी वो निर्दोष सी चीख तो कलेजा मेरी अंतरात्मा को धिक्कारता हैं, कर बुलंद आवाज़ सर सरेआम उन दहेज के लेनदारों को कैसे समाज मे जीता हैं, ठान मन मे एक रीत नई चलाऊंगा, हैं कोई दहेज़ दानव तो उनकी होली जलाऊंगा, हर बेटी,हर बहु, हर कन्याओं को,मत सहन करना न दबना यहीं फरमान फैलाऊंगा। एक बार कैप्शन अवश्य पढ़ें. #काव्य_मेला #competitionwriting साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता (प्रतियोगिता-6)