उत्पाती के उत्पात से दिन ओ दिन धरती बैठी रोय, आधुनिकता की दौड़ में कीन्हा कितना मैला मोय। वायु प्रदूषित जल प्रदूषित है नीरव भी हो रहा प्रदूषित , मानव तेरी करतूत से हुई ये सारी बहुधा ही प्रदूषित। लोलुपता में