बचपन में ही बड़ा हो गया, नाम रखा है उसका छोटू, दुबली पतली उसकी काया, पर फुर्ती है बड़ी गज़ब की, दौड़ दौड़ कर गाहक सुनता, बोली मीठी लगे अदब की बाप पड़ा है धुत्त नशा कर, हार चढ़ा है माई फोटू,बचपन में ही बड़ा हो गया, क्या होता है पढ़ना लिखना, पढ़ लिख कर एक अफसर बनना, माई होती तो कुछ करती, उसे नहीं पड़ता यह करना, छोटी मुनिया रहेगी भूखी, नहीं कमाने जाये तो तू,बचपन में ही बड़ा हो गया, चाय जरा सी छलक गयी थी, एक साहब के कपड़ों पर, उसे बहुत डर लगने लगता, ग्राहक मालिक झगड़ों पर, साहब के संग एक दुलारा, उस पर एक खिलौना मोटू,बचपन में ही बड़ा हो गया कानूनन यदि देखा जाये, पाबंदी है बालक श्रम पर, लेकिन छोटू चला रहा है, पूरा घर ही खुद के दम पर, यह मालिक यदि रखे नहीं तो, फिर भटकेगा कहीं पे छोटू वर्षा श्रीवास्तव "अनीद्या" ©Varsha Shrivastava छोटू