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रहती हैं मर्यादा में जब, ये समुन्दर की लहरें..!

 रहती हैं मर्यादा में जब,
ये समुन्दर की लहरें..!

शान्ति रहती है वातावरण में,
यूँ गज़ब नज़ारे ठहरें..!

न करो प्रदूषित धरा को समझो,
मिलेंगे नहीं फिर यूँ घाव गहरे..!

सुरक्षित रहोगे कैसे और,
लगाओगे कहाँ के पहरे..!

चक्र की भाँति दिया और बाती,
जीवन भर करना क्यों तेरे मेरे..!

अँधकार जीवन को कर क्यों,
लेने मुसीबतों के फेरे..!

बीच भँवर क्यों फँसना अभी से,
जब हो साहिल के साये में सुहाने सहरे..!

सुन कर प्रकृति की चीख़ सीख लो,
आँख कान बंद कर न बनो अंधे बहरे..!

©SHIVA KANT
  #maryada