ये ज़िदंगी अलबेली है उलझी हुई पहेली है कुछ लकीरें हैं नसीब में कभी बंद मुट्ठी,कभी खुली हथेली है ऊँची तेरी उड़ान है सामने खुला आसमान है ज़िदंगी ने बहुत कुछ सिखा दिया फिर भी सफ़र ये अनजान है इधर-उधर से उड़ रही खुश्बूओं में वो चमेली है ज़िदंगी मैं तेरा आशिक हूँ वो मेरे महबूब की सहेली है... © abhishek trehan ♥️ Challenge-572 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।