कदाचित विरह के पीर में... अब दिल ये रोयेगा उम्रभर ! और आहत शब्दों के व्यूह से , निकलना ही होगा निरंतर रिक्तियों से भर चुका है , जो प्रेम का सूखा समन्दर! गूंजता रहेगा मेरे कर्ण में , उन स्नेहसिक्त अधरों का स्वर ! ©V Vanya #विरह के स्वर