तरस खाता हूँ खुद पे कभी कभी टूट जाता हूँ खुद से कभी कभी, तन्हाई तेरी रुलाती है बहुत चौंक जाता हूँ रात में कभी कभी, गिनता हूँ रात में तारे घड़ी घड़ी लगता है कोई बुलाता है कभी कभी, रोशन थी वो शाम बहुत जिनमें तू मिल लेता था कभी कभी, लड़ा था हालातों से मैं बहुत बेइंतेहा सताया था तूने कभी कभी, क़िस्मत को कोसते हो क्यों बहुत समझाता था 'संघ' सबको कभी कभी।। #lifelessons #randomthought #painful #missing_diaries