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यूँ सज़-सँवरकर जो आती हो समा को तुम बहकाती हो, र


यूँ सज़-सँवरकर जो आती हो
समा को तुम बहकाती हो, 
रंग और नुर को छलकाती तो
हमको खुशबु से मोह जाती हो, 
ज़रा बताओ ना...तुम मुझको
आखिर..किसके लिए खिल आती हो ?

©Deepali Singh
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