बीत गई ज़िन्दगी तीन किस्तों में, बचपन, जवानी, बुढ़ापा और कुछ माटी के रिश्तों में, जब उठा जनाजा खुद का दुसरो के कंधो पे, पल भर में ही खाक हुआ शरीर, बस कुछ लकड़ी के टुकड़ो में, यूँ ही करता है गुमान मानव, जैसे ले जायेगा सब कुछ अपने साथ, सफेद चादर और अरथी के बिस्तर में. ✍️✍️✍️ "Written:- By @ Umesh kumar" #ज़िन्दगी तीन किस्तों में,