अधूरा ख्वाब रह-रहकर जब आंखों में खटकता है, राह कँटीली फिर भी वो हंस हंस के चलता है। दूर से देखने से लगती आसान हर मंजिल, नापना हो तो समंदर में उतरना ही पड़ता है। बेजान पड़ा मिट्टी के नीचे तो कोयला है, दबावों की मार झेल कर ही वह कोहिनूर बनता है दरवाजे मन के कभी बंद करना ना दोस्तों , खुशियों का कारवां इन्हीं से होकर गुजरता है । "प्रभा" उस दिल को हजार दुआएं देना, जो दूसरों के दर्द से खुद भी पिघलता है। # अधूरा ख्वाब रह-रहकर जो आंखों में खटकता है