ये धूप, तू मान मेरी ये धूप, तेरा यूं नित्य बढ़ना लाजमी है मानता हूं मैं, तेरी तपन तुझको मानवों ने ही दिए, जानता हूं मैं पर क्या तू भी बन जाओगी निर्मोही और निष्ठुर तू मान मेरी, कर दे ऐसी सभी नाराजगी तू दूर मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । आकांक्षाओं कि परिसिमा लांघते गए ओ इस कदर पेड़ काटे, पर्वत - पहाड़ तोड़े, और न जाने क्या-क्या किए दर्द तेरी समझता हूं, ऐसे ही नहीं ढा रही तू ये कहर पर तुझसे से तो हमने ना कभी ऐसी उम्मीद किए मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । अच्छे, बुरे, लोभी, लालची, मतलबी चाहे जैसे भी आखिर ये भी तो तेरे संग ही रहते, तू रखे चाहे जैसे भी मान जा, तू जिद न कर, बढ़ तू पर न इस तरह देख, प्रकृति प्रेमियों के भी आंसू बने पसीने कि तरह मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । नन्हे बच्चों की अभी छुट्टियां भी तो नहीं हुई तेरी तपन उन्हें तड़पाती है, न जाऊंगा स्कूल, कहलवाती है ये भविष्य कल के, पढ़ कर समझेंगे तेरी वेदना को तू भी तो समझ बागों से दूर होते इनकी संवेदना को मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । प्रकृति प्रेम @ प्रकृति की तपन