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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वह अकेला नहीं रह सकता

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वह अकेला नहीं रह सकता इस सामाजिकता के बौद्ध के चलते वह किसी ना किसी के संगीत में रहता है यह संगीत व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण करती है सत्य संगीत से मनुष्य के भीतर मनुष्यता के गुण जागृत होते हैं और कुछ संघ से दुर्गुण राजा भृतहरि अपने नीति शतक में कहते हैं कि अच्छे संगीत बुद्धि के अहंकार को हरी ते हैं वचनों को सत्य की धारा से संचित है मान को बढ़ाती है पाप को दूर करती है चित्र को बर्तन रखती है और चारों और यश फैलाकर मनुष्य को लाभ पहुंचाती है वास्तव में व्यक्ति जैसे संगीत करता है वैसे ही बन जाता है गंद जब तू शब्द का संघ करती है तो सुगंध बन जाती है और दूर शब्द के संग से मिलकर दुर्गंध दूर को जब शक्कर का साथ मिलता है तो वह मीठा हो जाता है और खटाई का साथ पाकर बैग फट जाता है यही संघ और कुसंग का प्रभाव है उचित संगत पाकर कोई भी गुण माल बन जाता है जैसे यदि रेत की दीवार बनाई जाए तो वह हल्की सी हवा के झोंके से ही धराशाई हो जाएगी परंतु जब उसे सीमेंट के संग मिला दिया जाए और रेती बहुत से दूर हो जाती है तब गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं पारस पत्थर की संघ से जैसी लोहा सोना बन जाता है ठीक वैसे ही सत्य संगीत से मूर्ख भी ज्ञानी बन जाते हैं किसी व्यक्ति के संगी साथियों को देखकर आप उस व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसके कार्य व्यवहार के बारे में जान सकते हैं संगीत ही व्यक्ति को सद्गति या दुर्गति का निर्धारण कराती है वास्तव में सदा व्यक्ति शुद्ध विचार शब्द साहित्य सत्संग व्यक्ति को शुद्ध अंतःकरण युक्त श्रेष्ठ व्यक्ति के रूप में विकसित करते हैं जबकि पूर्व संगीत पतन की गहरी गलत में ले जाते हैं हम बहुत सोच विचार ही जन्म में अपने संगीत तय करते हैं चाहिए यही संगति हमारे जीवन की नित्य निर्धारित करती है

©Ek villain # नियति निवारक संगति

#OneSeason
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वह अकेला नहीं रह सकता इस सामाजिकता के बौद्ध के चलते वह किसी ना किसी के संगीत में रहता है यह संगीत व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण करती है सत्य संगीत से मनुष्य के भीतर मनुष्यता के गुण जागृत होते हैं और कुछ संघ से दुर्गुण राजा भृतहरि अपने नीति शतक में कहते हैं कि अच्छे संगीत बुद्धि के अहंकार को हरी ते हैं वचनों को सत्य की धारा से संचित है मान को बढ़ाती है पाप को दूर करती है चित्र को बर्तन रखती है और चारों और यश फैलाकर मनुष्य को लाभ पहुंचाती है वास्तव में व्यक्ति जैसे संगीत करता है वैसे ही बन जाता है गंद जब तू शब्द का संघ करती है तो सुगंध बन जाती है और दूर शब्द के संग से मिलकर दुर्गंध दूर को जब शक्कर का साथ मिलता है तो वह मीठा हो जाता है और खटाई का साथ पाकर बैग फट जाता है यही संघ और कुसंग का प्रभाव है उचित संगत पाकर कोई भी गुण माल बन जाता है जैसे यदि रेत की दीवार बनाई जाए तो वह हल्की सी हवा के झोंके से ही धराशाई हो जाएगी परंतु जब उसे सीमेंट के संग मिला दिया जाए और रेती बहुत से दूर हो जाती है तब गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं पारस पत्थर की संघ से जैसी लोहा सोना बन जाता है ठीक वैसे ही सत्य संगीत से मूर्ख भी ज्ञानी बन जाते हैं किसी व्यक्ति के संगी साथियों को देखकर आप उस व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसके कार्य व्यवहार के बारे में जान सकते हैं संगीत ही व्यक्ति को सद्गति या दुर्गति का निर्धारण कराती है वास्तव में सदा व्यक्ति शुद्ध विचार शब्द साहित्य सत्संग व्यक्ति को शुद्ध अंतःकरण युक्त श्रेष्ठ व्यक्ति के रूप में विकसित करते हैं जबकि पूर्व संगीत पतन की गहरी गलत में ले जाते हैं हम बहुत सोच विचार ही जन्म में अपने संगीत तय करते हैं चाहिए यही संगति हमारे जीवन की नित्य निर्धारित करती है

©Ek villain # नियति निवारक संगति

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