दिल की बातें लिखी और खत खुला रहने दिया था न पर्दा कोई ज़माने से सुख दुख का मैंने हिस्सा किया। न बनती थी बातें न हँसते थे लोग हाल संदेशा पहुँचाने का लोगों ने मुझे ज़रिया किया। गुज़रा वक़्त, खतों का मौसम बदला बदले लिखनेवाले, मैं बस अब किस्सा हुआ । -©अनुपमा झा Pc google #पोस्टकार्ड