खदु टूट कर लबों पर मुस्कान दे गया यूं समझो गिरे वक्त में बस काम दे गया आया खामोशी से और घर का हिस्सा बन गया शीशे सा था बदन मेरा गिरा और चूर चूर हो गया मैं एक बस दस रुपये का गुल्लक था औकात ही क्या मेरी न जाने कब का कर्ज था मुझ पर यारों समझो बस अदा हो गया