हम भी कुछ उम्मीद लगाए बैठे हैं, हम भी तो कुछ ख़्वाब सजाए बैठे हैं। माना की सब संगी - साथी छूट गए, फिर भी हम आंखों को बिछाए बैठे हैं। टूटने वाले टूट - टूट कर बिखर गए, एक हम हैं जो टुकड़ों को दबाए बैठे हैं। मायूसी भी आ - आकर के लौट गई, चेहरे पर मुस्कान चढ़ाए बैठे हैं। मिलो कभी फुर्सत में तो बतलाएंगे, हम कैसे कैसे दर्द छुपाए बैठे हैं। ©prateekjackie... #नोजोटो_साहित्य