क्यूँ छीन लेता है, सुहाग स्त्रियों के… हे परमात्मा तू तो दया का सागर है , फिर बता तू क्यूँ कभी-कभी निर्दयी हो जाता है । क्यूँ छीन लेता है, सुहाग उन स्त्रियों के, जिनका जीवन सही से, शुरू भी नहीं हुआ होता है । अगर नहीं पता तो देख, कभी झाँककर उनके सूने दिल में , फफक-फफककर, रो रातों को , ये कितने तकिये भिगोता है । जो उनके अपने हैं , वो घर बैठें तो नुख़राने लगते हैं , अगर जाये बाहर नौकरी करने, तो आरोप ग़लत लगाने लगते हैं । उनकी चाह सजने-सँवरने की, मन से जैसे मिट-सी जाती है , वो बहुत कुछ रखती हैं अरमान दिल में, मगर बिन साजन कह नहीं पाती हैं । अब वो एक माँ भी हैं , तो टूटा हुआ नहीं देख सकती अपने बच्चों के ह्रदय को , वो दिलाती हैं दिलासा उन्हें, पिता नहीं हैं उनके तो क्या हुआ , माँ के साथ-साथ , वो पिता का भी फ़र्ज़ अदा करेंगी । नहीं हटेंगी पीछे कैसे भी हालात हों, उनकी परवरिश के लिए , वो जीवन की हर चुनौती से लड़ेंगी । माना तू रखता होगा हिसाब-किताब , पिछले जन्म के कर्मों का, लेकिन कैसे करें यक़ीन तुझ पर, तू क्यूँ एक जन्म का हिसाब, उसी जन्म में नहीं करवाता है । हे परमात्मा तू तो दया का सागर है , फिर बता तू क्यूँ कभी-कभी निर्दयी हो जाता है । ©Ravindra Singh #विधवानारी #विधवा ये पंक्तियाँ लिखी है मैंने एक उस स्त्री को ध्यान में रखते हुए जिसकी उम्र लगभग ३५ वर्ष रही होगी, उसकी ५ बेटियाँ है उसके पति की कैंसर से मृत्यु हो गई है कुछ साल पहले , उसने दूसरी शादी नहीं की ये सोचकर कहीं उसकी बेटियों की ज़िंदगी बर्बाद न हो जाए । उसका दर्द बहुत गहरा है मगर वो खुलकर रो भी नहीं सकती सिर्फ़ इस वजह से कि कहीं उसकी बेटियाँ कमजोर न पड़ जाए । ऐसी इस संसार में न जाने कितनी औरतें हैं जिनके पति के जाने के बाद घुट-घुट कर अपना सारा जीवन गुज़ारती हैं । ये पंक्तियाँ मैंने उपर वाले से शिकायत करते हुए लिखी हैं, इनका शीर्षक है :- क्यूँ छीन लेता है, सुहाग स्त्रियों के…