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चित चंचल मन में सभाएं , कोई विचार जो पकड़ में

चित चंचल मन में सभाएं ,
     कोई विचार जो पकड़ में ना आए।

    खुद घूमे वो मुझको भी घुमाएं 
   जितना कसकर पकड़ना चाहूं 
    वो उतनी शीघ्रता से फिसलता जाए।
    जब मैं थककर हर मानलू 
    तो वो मुस्कुरा कर कहें
    इतनी जल्दी ! नहीं, नही
     अभी तो शुरुआत है।

  ~रूचि यादव🕊️

©Anshul kewat चित चंचल मन में सभाएं ,
     कोई विचार जो पकड़ में ना आए।

    खुद घूमे वो मुझको भी घुमाएं 
   जितना कसकर पकड़ना चाहूं 
    वो उतनी शीघ्रता से फिसलता जाए।
    जब मैं थककर हर मानलू 
    तो वो मुस्कुरा कर कहें
चित चंचल मन में सभाएं ,
     कोई विचार जो पकड़ में ना आए।

    खुद घूमे वो मुझको भी घुमाएं 
   जितना कसकर पकड़ना चाहूं 
    वो उतनी शीघ्रता से फिसलता जाए।
    जब मैं थककर हर मानलू 
    तो वो मुस्कुरा कर कहें
    इतनी जल्दी ! नहीं, नही
     अभी तो शुरुआत है।

  ~रूचि यादव🕊️

©Anshul kewat चित चंचल मन में सभाएं ,
     कोई विचार जो पकड़ में ना आए।

    खुद घूमे वो मुझको भी घुमाएं 
   जितना कसकर पकड़ना चाहूं 
    वो उतनी शीघ्रता से फिसलता जाए।
    जब मैं थककर हर मानलू 
    तो वो मुस्कुरा कर कहें
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