तकदीर बनाने की बात उठी , नेताओं की तादात बढ़ी । सब एक से बढ़कर बोलते , कहीं दिन कहीं रात बढ़ी ।। झांसा वादो का होता था , कहीं लात कहीं बात बढ़ी । जनता सोच रही बेसब्री से , तकदीर की रेखा माथ चढ़ी।।