शहर की सड़कों पे मैं कोसों चला हूँ, अब गांव की गलियों की कमी खल रही है, गाँव की छाँव मे बीता जो बचपन, अपनी की यादें इत्तीलह कर रही है. . मॉडल जमाने मे सब कुछ नया हैं, गाँव की मिट्टी की अब कीमत कहाँ हैं, सब अपनी ही मस्ती में गुम हो चुके हैं, बुजुर्गों की बातें अब कहाँ चल रही है. . बदन पे न साड़ी, न सर पे है घुघट, संस्कारों की ऐसी चिता जल रही है, शहर की सड़कों पे इतना घुमा हूँ, की गाँव की गलियों की कमी खल रही है. . वो गाँव के खेत, वो बरगद का पेड़, जहाँ आज भी एक जिंदगी पल रही हैं, अब कर हिम्मत और कदम बड़ा, देख ये राह भी तेरे घर को चल रही है, . कब आएगा सूरज, कब होगा सबेरा, तेरी याद में आज भी एक रोशनी जल रही हैं. जरा महसूस तो कर इन फिजाओं, गाँव की महक पवन के साथ चल रही है . शहर की सड़कों पे मैं कोसों चला हूँ, अब गांव की गलियों की कमी खल रही है ©Pawan Singh Prajapati #gaanv #shahar #kami #Intzar #preshan #village #miss #yaadein #oldthought #fog