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बेबसी तिश्नगी रतजगे याद ग़म हिज्र क्या कुछ नहीं वै

बेबसी तिश्नगी रतजगे याद ग़म हिज्र क्या कुछ नहीं 
वैसे सब कुछ वही है कहानी में मेरी नया कुछ नहीं 

मेरा क्या ले गया मैंने ये सोचकर उसको जाने दिया 
बाद रुख़सत के देखा पलटकर तो पीछे रहा कुछ नहीं 

उसकी आँखों में थी वो जो रंगीन बस्ती सराबों की थी 
मुझको दिख तो बहुत कुछ रहा था वहाँ वैसे था कुछ नही

जब सफ़र हो चुका हम सफ़र की हक़ीक़त से वाकिफ़ हुए 
या तो होता है सब दो दिलों की कहानी में या कुछ नहीं 

मुझको वीराँ जज़ीरों पे लंगर लगाने निकलना है अब 
पर तुझे इससे क्या है मेरी जान तू मुस्कुरा कुछ नहीं 

उसकी आँखों को सोचेंगे तन्हाई में और लगाएँगे कश
जो हुआ सो हुआ छोड़ चल जाने दे तू भी जा कुछ नहीं

©CharanJeet Charan
  वैसे सब कुछ वही है कहानी में मेरी नया कुछ नहीं
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