सड़क तुम मेरे पथगामी , मै तुम्हारी मंजिल की साक्षी, तुमने मुझे कुचला , अपने पैरों तले , मैंने कभी आह तक न की । तुम चले मुझ पर , निरतंर , आतुर हो , चूमने अपनी मंजिल , मैंने कभी प्रशंसा की चाह तक न की । वजह मैं बनी , तुम्हारी मंजिल को पाने की , पर तुमने कभी मेरी वाह तक न की । स्वहित अपना साधने , निरन्तर चले तुम मुझ पर , मैं सड़क , तुम अनुगामी । - राणा सड़क सड़क #तुम मेरे #पथगामी , मै तुम्हारी #मंजिल की #साक्षी, तुमने मुझे #कुचला , अपने पैरों तले , मैंने कभी #आह तक न की ।