उस अँधेरे के सन्नाटे में कोई पीछा कर रहा था। उसकी आहटों से मैं थोड़ा थोड़ा डर रहा था , मुड मुड कर देखता तो किसे , कोई था भी तो नही , ज़रा रुक कर ज़रा थम कर , इंतज़ार जो किया , आया जो सामने वो , मैंने पहचान भी लिया , कोई और नही मेरा साया ही था , जो मुझे कल खिंचा कर रहा था , आज वही मेरा पीछा कर रहा था ।।