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चलो हम भी शहर को थोड़ा गांव बनाते हैं, अपने अपने ज

चलो हम भी शहर को थोड़ा गांव बनाते हैं,
अपने अपने जीवन में कुछ गंवई हो जाते हैं।
# जयन्ती


(Read full piece in the caption) गांव
योग है, जीवन है, संतोष है।
शहर
भोग है ,जीविका है कुछ और पा लूं का रोग है।
गांव
समायोजित है, समर्पित है,एकीकृत है।
शहर
अति नियोजित है,आत्म केंद्रित है, पाषाण सा विभाजित है।
चलो हम भी शहर को थोड़ा गांव बनाते हैं,
अपने अपने जीवन में कुछ गंवई हो जाते हैं।
# जयन्ती


(Read full piece in the caption) गांव
योग है, जीवन है, संतोष है।
शहर
भोग है ,जीविका है कुछ और पा लूं का रोग है।
गांव
समायोजित है, समर्पित है,एकीकृत है।
शहर
अति नियोजित है,आत्म केंद्रित है, पाषाण सा विभाजित है।