हर दिन अपना एक जैसा ना कुछ नया पुराना है है भटक रहे है मंज़िल की तालाश में ख़बर भी नहीं कहां जाना है कहीं पे है रातें कहीं पे सवेरे अपना ना कोई ठिकाना है आवारगी से भरे हम अंदाज़ थोडा शायराना है ©Nikhil Kumar #reuploaded