सपने मेरे सब टूट गए, जब जाना कितना गहरा पानी। न तैरना मुझको आता था, न पास थी कोई नाव मेरे। लकड़ी को एक विश्वास बना, फिर लहरें सारी साथ मेरे। एक दूर किनारा दिखा मुझे, पत्थर की थी चट्टान बड़ी। चढ़ते-चढ़ते ऊपर जिसपर, साँसे जो मेरी हुई खड़ी। मंजिल थी मेरी पूरब में, उस लाल दिशा को जाना था। सपनों के डर से नींद नहीं, फिर से वापस न जाना था। अब चारों ओर उजाला था, टूटे सपने से जीत गया। था मुझको अब विश्वास बड़ा, जीवन जीना मैं सीख गया। #NojotoQuote टूटे सपने। # hindikavitakoshblog. blogspot.com