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एक चांद ढेर सारे तारे कभी जगमग किया करते थे रातें

 एक चांद ढेर सारे तारे
कभी जगमग किया करते थे
रातें वो बचपन की
जब रात में हम डरते थे।
शाम को हम भी कभी
हुडदंग मचाया करते थे
बच्चे थे मोहल्ले के
मोहल्ले को सर पे उठाया करते थे।
नदी नहर तालाब में हम नहाया करते थे
घर में आके फिर बड़ों से डांट खाया करते थे
उम्मीद नाउमीद का खेल कोई था नहीं
बस पकड़न पकड़ाई में
यूं ही कभी हम भी शामों सहर बिताया करते थे।

©Ravi Kant
  बचपन

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Ravi Kant

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बचपन बचपन Childhood कविता

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