मंजिल आर.वी. चित्रांगद की कलम से मंजिल के तलाश मे आधी उम्र गुजर गई सपनों की चाभी रास्ते में बिखर गई चाभी बिखर कर बीच मे अटक गई मंजिल की देवी रास्ता भटक गई घर के प्यार ने मंजिल भुला दिया मेरे सपनों को फाँसी पे झुला दिया मंजिल का पता है न किसी राह गुजर का बस एक थकान है जो हासिल है सफर का उम्र गुजर ने पर ये समझ आया मंजिल को मैं क्यों नही पाया मंजिल की मंजिल मैं और मेरी मंजिल मंजिल है जितना कर्म किया बस वही हासिल है मंजिल