जगत्जननी! मैं बस, माध्यम सृजन का? प्रसवपीड़ा का लिये भार ढोया अस्तित्व मानव संतति का मैंने ही सिंदूर मांग में, मेरा श्रृंगार! हुई बेघर, उफ! अग्नि परीक्षा फिर-फिर? धरित्री ने समाया जिसको, जगद्धात्री वह सीता भी मैं ही हूँ एक औरत हूं मैं... @susan #एक_औरत_हूँ_मैं © SUSAN