Nojoto: Largest Storytelling Platform

इन अन्तहीन गुफाओं से रोज कोई पुकारता है इक मौन मुझ

इन अन्तहीन गुफाओं से रोज कोई पुकारता है
इक मौन मुझे पुकारता है ये कौन मुझे पुकारता है
उस शून्य की ध्वनि में खो जाती हूं मिट जाती हूं
फिर आंधी बन एक प्रवाह गुजरतीं हैं
मैं निसहाय हो बह जाती हूं
उस शून्य में स्वंय को खोने से डरती हूं?
या इस भीड़ में मरने से डरती हूं?
इक मौन मुझे पुकारता है ये कौन मुझे पुकारता है
आकाश में तारो का टिमटिमाना डरता है
और बादलों का आंख दिखाना मन बहलाता है

ओशो का बरसना मन छलनी कर जाता है
सैलाब बहाकर अविरल विचारों को सकूं दे जाता है
मौत की याद जिंदगी को जीवंत बनाती और
जिंदगी की चाह जिंदगी निरस कर जाती हैं
उन सर्द घाटियों से उन पहाडो की ऊंचाइयों तक
एक मौन मुझे पुकारता है ये कौन मुझे पुकारता है

©Sandhya Achrya
  #Recommended_Stories

Recommended_Stories #पौराणिककथा

27 Views