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न जाने क्यों जाने क्यों उम्मीद जाग जाती है अंधेरे

न जाने क्यों

जाने क्यों उम्मीद जाग जाती है
अंधेरे बंद कमरों में 
खुलेगा रोशनदान कोई
चुपके से एक नन्ही सी किरण
मुझसे लिपटेगी
मेरे भीतर न जाने क्यों उमढता है नेह
कि पथरीली दीवारों के भीतर भी
कोई तड़प रहा होगा मिलन को
मैं क्यूँ उम्मीद में बैठी हूँ कि कभी
टूटेगा तिलिस्म उसकी आंखों का 
और वह पढ़ ही लेगा 
मेरे इंतजार को। न जाने क्यों
न जाने क्यों

जाने क्यों उम्मीद जाग जाती है
अंधेरे बंद कमरों में 
खुलेगा रोशनदान कोई
चुपके से एक नन्ही सी किरण
मुझसे लिपटेगी
मेरे भीतर न जाने क्यों उमढता है नेह
कि पथरीली दीवारों के भीतर भी
कोई तड़प रहा होगा मिलन को
मैं क्यूँ उम्मीद में बैठी हूँ कि कभी
टूटेगा तिलिस्म उसकी आंखों का 
और वह पढ़ ही लेगा 
मेरे इंतजार को। न जाने क्यों