मोहक आकर्षित प्रकृति को सुन्दर यही बनाते है और इन्हीं को काट-काट हम बश्ती-शहर बसाते हैं अपनी निजी स्वार्थ वस हम यें तक भूल जाते हैं तपती कड़ी धूप में हम छाया इन्हीं की पाते हैं काटे जाने पर इनको प्रकृति रो- रो जाती है हाथ जोड़ कर के हमको वारंबार मनाती हैं पर हम निष्ठुर निर्दयी कहा समझ ये पाते हैं निजी स्वार्थ वस हम बस इनकी बली चड़ाते जाते हैं अगर अभी भी हम ना समझे बहुत देर हो जाएगी जीने की खातिर भी हमको एक सास तलक ना आयेगी । - मनीष तिवारी ©Manish Tiwari 🌳🌍save plant save life🌍 follow me on Instagram 👇 www.instagram.com/mtorchha . . . . .