मुझे समझना, तुने कभी कोशिश की हीं नहीं, परखने का शौख था तुझे, कभी मेरे दिल में झांखने, कोशिश की हीं नहीं, कया पता कितना सच बोलता है तु, यकीन कभी किया ही नहीं, हर बार शक के दायरे में ही रहता हूँ मैं, औरों से कभी अलग समझा हीं नहीं, झूठे, मक्कार, धोखेबाज़, फरेबी, अच्छे लगते थे, आदत सी जो थी, इतना भी बुरा न था में, तुजे सच्चा अनुपम कमी दिखा ही नहीं इतना भी मुश्किल न था... मुझे समझना, तुने कभी कोशिश की हीं नहीं, परखने का शौख था तुझे, कभी मेरे दिल में झांखने, कोशिश की हीं नहीं,