##फूल और काँटा## ############# काँटों से क्या गिला, चुभना तो उनकी फितरत है, मुझे तो गिला उन फूलों से है, जो कोमल होकर भी मुझे जख्मी कर जाते हैं। ए फूल मुझे गलत मत समझना, क्योंकि सारा दोष तो मेरे नज़रों का है, जहाँ देखते हैं खूबसूरती, वही फिसल जाते हैं।। काँटों की चुभन सहकर भी उन फूलों का मकरंद चूसा करता था, मैं भौरा बनकर। आज आंसू बहा रहा हूं , क्योंकि कोई मसल रहा है, उन फूलों को माली बनकर।। फूलों को मसलते हुए देखकर कलियाँ अब रो रहीं थी। अब मुझे खिलने मत देना, वह पत्तियों से कह रही थी।। अगर मैंने केवल तेरी परवाह की तो ये डंठल भी सुख जायेगा। मुझे तो चिंता उस माली की है कि वह बिन मारे हीं वह मर जायेगा।। पत्ती तुम कुछ भी कर लो, मैं(डंठल)अपना प्रकृति छोड़ नहीं पाउँगा। अगर मैं सुख भी गया तो, किसी न किसी का भला कर जाऊंगा।। Tr-Rajesh kumar फूल और काँटा