बसर कर रहे हैं संभलते संभलते । बदल जाएगा दिन बदलते बदलते । न जाने वो मासूम तल्खी जहाँ की , वो चन्दा को माँगे मचलते मचलते । न देखें खुद्दारा यूँ दरपन को ऐसे , निखर जाइयेगा टहलते टहलते । ये नादान दिल है मना लेंगे इसको , बहल जाएगा ये बहलते बहलते । सरेराह बहनों की लुटती है अस्मत , कहाँ आ गया कारवाँ चलते चलते । ---- सतीश मापतपुरी ©Satish Mapatpuri सम्भलते सम्भलते #WritingForYou