मेरा एक यार रहता था।। इस गली के, उस चौक पे, मेरा एक यार रहता था। मेरी तन्हाइयों का दस्तक, मेरा साया मेरा सार रहता था। वर्षों बीते, पर याद धूमिल, अभी ताजी है। उसने, उसी छोटू नाई की दुकान पर, कटवाए थे बाल अपने। वो छोटू नाई, जो लिए उस्तरा आज सड़कों पर, पत्थरों से पटी सड़कें, लाठी, तलवार, भाले, पेट्रोल भरे जलते बोतल, चारों ओर बिखरे थे। विलाप का स्वर भी नहीं, किसी आतंक का ज्वर भी नहीं। आग और धुएं की लपटें, मानो प्रतिस्पर्धी हुए थे। कर खाक, जिंदगियां, लहराते आसमां छुए थे। बदहवास सड़क पर, मैं बस भागता जा रहा। हाय, आज मेरा धर्म ही सालता जा रहा। वो सीमेंट का चबूतरा, हमारे जवान होने का गवाह। कहीं लाल, कहीं कालिख रंग सना, मानो दर्द में डूबा हो अथाह। कलेजा मुख को, धड़कनों की आवाज़ सन्नाटा चीरती। कहाँ गयी वो दार जी की आवाज़, जो देख हमें साथ थी चीखती। सन्न हुआ, नज़रें कुछ खोज रहीं थी, हवाएं, नासिका में, गोलियां बोज रहीं थीं। लगता है कुछ है वहां, कुर्ते का बाजू, रंग बदल लाल हुआ था। टायरों संग भुनती गोश्त की बदबू, आग की लपटों से जो लाल हुआ था। मैं आधा खड़ा देखता, आधा टायरों में फंस जल रहा था। अपने आप को मानो कह अलविदा, किसी और सफर पर चल रहा था। आज मैं हार गया अपने आप से, थे अलग दोनों बस नाम से। किसकी हत्या का दोषी हूँ मैं, हुंकारता रावण है पूछता राम से। अश्रुधार पलकों से पहले सूख गए, ये दृश्य देखने से पहले। मैं था अकेला नहीं, जमीं आसमां दोनों थे दहले। हृदय का घाव था गहरा, लिख रहा भर कलम में स्याही। मैं ही मरा, मैं ही खड़ा था, कौन था दोषी, कौन देता गवाही। ©रजनीश "स्वछंद" मेरा एक यार रहता था।। इस गली के, उस चौक पे, मेरा एक यार रहता था। मेरी तन्हाइयों का दस्तक, मेरा साया मेरा सार रहता था। वर्षों बीते, पर याद धूमिल, अभी ताजी है।