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तुम सामने होती और साँसों की डोर मैं छोर जाता। काश

तुम सामने होती और साँसों की डोर मैं छोर जाता।
काश के वो आख़िरी वक़्त मैं तुम्हेँ देख पाता।
तुम्हारी ज़ुल्फ़ का मुझ पर वो घना साया होता।
काश के उस वक़्त सिर्फ़ तूँ मेरा हमसाया होता।
तुम्हारी बाँहों का नाज़ुक सा वो घेरा होता।
मेरी आँखों मे तुम ही तुम होती, ना मौत का अंधेरा होता।
ज़िस्म से रूह तक का हर दर्द गवारा होता।
काश आखिरी सफर में मुझे तेरा नज़ारा होता।
काश उस लम्हे में तुम करीब होती।
मेरे लब खामोश होते और तुम्हारी खामोशियाँ मैं सुन पाता।
काश ज़िंदगी ना सही अपने मर्ज़ी का मौत तो मैं चुन पाता।
काश के वो एक पल तुम करीब होती,
और आखिरी दफ़ा मैं तुम्हेँ सुन पाता।।

- क्रांति #आख़िरी सफर
तुम सामने होती और साँसों की डोर मैं छोर जाता।
काश के वो आख़िरी वक़्त मैं तुम्हेँ देख पाता।
तुम्हारी ज़ुल्फ़ का मुझ पर वो घना साया होता।
काश के उस वक़्त सिर्फ़ तूँ मेरा हमसाया होता।
तुम्हारी बाँहों का नाज़ुक सा वो घेरा होता।
मेरी आँखों मे तुम ही तुम होती, ना मौत का अंधेरा होता।
ज़िस्म से रूह तक का हर दर्द गवारा होता।
काश आखिरी सफर में मुझे तेरा नज़ारा होता।
काश उस लम्हे में तुम करीब होती।
मेरे लब खामोश होते और तुम्हारी खामोशियाँ मैं सुन पाता।
काश ज़िंदगी ना सही अपने मर्ज़ी का मौत तो मैं चुन पाता।
काश के वो एक पल तुम करीब होती,
और आखिरी दफ़ा मैं तुम्हेँ सुन पाता।।

- क्रांति #आख़िरी सफर