|| श्री हरि: ||
59 - चंचल
'श्याम, तू बड़ा चंचल है रे।' माता रोहिणी ने किसी प्रकार कन्हाई का एक हाथ पकड़ा। श्रीकृष्णचंद्र पूरा दिन वन में बिताकर लौटा है। सखा अपने गोष्ठों में गोंएं बांधने गये हैं। उनके आने के पहले मोहन को स्नान करा देना है। वस्त्र बदल देने हैं। सखाओं के आने के बाद यह सब होने से रहा। फिर तो यह उनके साथ धूम करने में लग जायेगा। वे बालक आते ही होंगे और यह चपल कभी द्वार तक भाग जाता है, कभी किसी वस्तु को उलटता - पुलटता है और कभी कुछ करने लगता है। माता स्नान कराना चाहती है, किंतु यह बार-बार भाग जाता है।
'नहीं, मां, चंचल तो दाऊ दादा है।' श्यामसुंदर ने दूसरे हाथ से अपने बड़े भाई को संकेत किया। 'मैं तो खेलता हूँ, कूदता हूँ और दौड़ता भी हूँ। मैं चंचल कहाँ हूँ मां?'
'दाऊ क्या चंचलता करता है?' माता जानती है कि उनके इस नन्हें कृष्ण के शब्दकोश में शब्दों के ऐसे - ऐसे अर्थ हैं जिन्हें कोई ऋषि - मुनि भी नहीं जानता होगा। #Books