धोखे सड़क थी सबक की हर मोड़ पर धोखे थे कुछ किसी के पाने पर कुछ किसी को खो कर थे यही सड़क थी मंज़िल की जंग थी दिमाग और दिल की निकल पड़े दिल की मान कर थोड़ी रूह और जान में दम भर कभी धोखों ने ढप्पा किया कभी सामने आकर पंगा लिया लड़ते रहे हम हर मोड़ पर आंसू छिपा मुस्कान ओढ कर फिर मोड़ पार मंज़िल दिखी कदमों की गति और बड़ी सीधा सीधा रास्ता चुभने लगा धोखे खाने में मन रमने लगा भूल बैठे थे सरलता को प्रकृति व मन की सुंदरता को अब सच्चाई पर विश्वास नहीं पास खड़ी मंज़िल की आस नहीं #धोखे #dhokhe #treason