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मुझे याद हैं आखरी अलफ़ाज़ वो सिसक रही थी, बिछड़ने का

मुझे याद हैं आखरी अलफ़ाज़ वो सिसक रही थी,
बिछड़ने का कहते कहते
वो जब हिचक रही थी!

न जाने किन मुश्किलों मे आकर वो बहक रही थी,
मेरे साथ तअल्लुक़
 बढाने मे शायद झिझक रही थी!

हाँ कुछ मजबूरियां रही होंगी ज़रूर उसकी,
जिस क़दर सहमी थी
 मेरा दिल भी उस क़दर धड़क रहा था!

मेरा साथ उसका साथ एक पूरे जमाने ने देखा था
वो जब जा रही थी
मेरा हाथ फड़क रहा था!

तुम क्या समझोगे मोहब्बत तो हमने जी है प्रेम
वो जब तक हमारे साथ थी
 ये जिस्म महक रहा था!!

©Love_for_ever_to_write
  #holdinghands