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वो क्या समझेंगे ढलती शाम का सुकून जिन्होंने ना कभ

वो क्या समझेंगे ढलती शाम का सुकून 
जिन्होंने ना कभी सूरज ढलते देखा 

वो क्या समझेंगे कसक चाहत की मेरी  
जिन्होंने ना हमें अपने खातिर आँखें मलते देखा #क्या#समझेंगे
वो क्या समझेंगे ढलती शाम का सुकून 
जिन्होंने ना कभी सूरज ढलते देखा 

वो क्या समझेंगे कसक चाहत की मेरी  
जिन्होंने ना हमें अपने खातिर आँखें मलते देखा #क्या#समझेंगे