कल साँझ ढ़ले, श्वेत कौमुदी की, चंचल किरणों तले, हिमाच्छादित हिमालय की, चोटी से, दुग्ध लेपित गंगा का निर्मल जल, बहकर जा पहुंचा, काशी विश्वनाथ के पग धोने, कल साँझ ढ़ले, श्वेत कौमुदी की, चंचल किरणों तले, हिमाच्छादित हिमालय की, चोटी से, दुग्ध लेपित गंगा का निर्मल जल, बहकर जा पहुंचा,