मासूम है वह,जिसकी जिंदगी नर्ख है; भटकता है इधर-उधर उसे भूख की खोज है; आँखों में परेशानी दिखती; फिर क्यू जुबान अभी भी ख़ामोश है। ---वह सच्च में मासूम होते है क्या?--- पैरो में चलने के लिए चप्पलो की खोज है; शर्म से हाथ आगे बढ़ाने के लिए अपसोस है; धूप में गला सूखना; ये मासूमो का नही पढ़े-लिखें मानव का दोष है। सर पर छाव नही इसलिए वह मदहोश है; कर्म अच्छा करे फिर क्यों उसका दोष है; शरीर में जान नहीं; फिर भी लड़ने का जोश है। --वह सच्च में मासूम होते है क्या?-- पीने के लिए पानी केवल वही इनका श्रोत है; जिंदा रहना कुछ दिन तक ये जिंदगी का दोष है; मासूमो में बसता भगवान का रूप; चलते समय में मुझे लगता ये इंसानियत का दोष है। #Maasum bacche #writtenby$iddhant maasum bcche