छम छम करके गिरती बूंदे धरा पर, यह कैसी लाली छाई है, चारों तरफ पानी की चादर, फिर वर्षा ऋतु आई है. वर्षा की बूंदे गिरती मच रहा यह कितना शोर, जंगल में मंगल करते हैं मगन होकर नाचे सारे मोर इंद्रधनुष से लगा सुहावन कितना है बादल, मानो शोभा बढ़ा रही हो अप्सरा के आंखों का काजल. नाले नदियां सब बढ़ गई, पानी की चादर छाई है, चारों तरफ है शोर मच रहा, फिर वर्षा ऋतु आई है. ✍️- श्यामबाबू बर्षा ऋतु आयी है