बेवजह नहीं आते ख़याल, यूँ ही नहीं लिखे जाते मक़ाल। पल दो पल की कहानी में, यूँ ही नहीं जोड़े जाते विसाल। दिल-दिमाग़ की कश्मकश अक्सर काग़ज़ पर उतर आती, हाँ-न-हाँ की ज़बान से फिर यूँ ही नहीं दिए जाते निकाल। वो शराफ़त है दिल की कि बात-बेबात पे कुरेदता नहीं है, आता होगा कुछ तो नज़र, यूँ ही नहीं उठाए जाते सवाल। कहने को तो कह दिया है अपना, मगर कभी समझा नहीं, मानते गर तो इज़हार के पल यूँ ही नहीं होते जाते हलाल। कुछ तो कमी रही होगी 'धुन', जो वो ऐतबार करते नहीं हैं, कभी आया हो निगाहों में, यूँ ही नहीं समझे जाते पखाल। मक़ाल- Sentence, Word विसाल- Connection पखाल- Dirt, Mud ♥️ Challenge-540 #collabwithकोराकाग़ज़