प्राण प्रियतमा सूखा सा वो गुलाब पन्नों के बीच भी महकता है; आज भी उसकी पंखुड़ियां तेरे होने का एहसास दिलाती है..।। कि जब भी बारिश आती है न जाने क्यों "छन" से बज उठते हैं कानों में तेरे पायल;