कोई नही आयेगा जगाने तुम्हें, यदि अन्दर से तुम टूट चुके | इस जगत कि आपा धापी मे, यदि तुम खुद हि खुद को भूल चुके | तो स्वंय अपना विवेक विस्तार करो,प्रचण्ड सागर से बनो | अग्निपथ पर चल कर तुम सूर्य सा प्रकाश बनो | तुम अपने दीपक आप बनो....| माना कि राज व्याप्त है कलियुग में, द्वेष, अज्ञान,हिंसा और कुटिलता का | पर तुम स्वंय के द्वांदो से लड़ कर,सरोवर से तुम शांत बनो | पग पग पर जल कर तुम दीप से परोपकारी बनो | तुम अपने दीपक आप बनो....| राहो में है कण्कड बिखरे हुए,तो क्या हुआ? विघनो में राही तो हंसते हंसते चलता है | कालचक्र के संघषो में पिस कर हि तो कोयले से हीरा बनता है | ज्ञान - विज्ञान का भण्डर है तुम में है भरा पड़ा, बस अपनी श्रमताओ का तुम भान करो | वेदो के तुम ज्ञान बनो,कालो में तुम महाकाल बनो | स्वंय को करलो विस्तृत इतना अखिल अनंत परिमाप बनो | संघर्षो में गरलपीडा पीता है जो,उस साधक सा निष्पाप बनो | तुम अपने दीपक आप बनो....| तुम अपने दीपक आप बनो