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जब मां शबरी के कई बरस की राम प्रतीक्षा पूर्ण हुई ज

जब मां शबरी के कई बरस की राम प्रतीक्षा पूर्ण हुई
जब मां शबरी की राम दरस पाने की इच्छा पूर्ण हुई

जब मां शबरी के बेर भी जूठे राम लखन ने खाए थे
जब लगा भक्त के साथ स्वयं भगवन ने पुण्य कमाए थे

क्या होती है भक्ति भावना मां शबरी ने सिखा दिया
कितना प्रेम है भक्तों से जब राघव ने ये दिखा दिया

मानों मां की प्रेम रश्मि चहुओर दिशा में छाई हो
ऐसा लगता मां शबरी ही , स्वयं प्रभु की माई हो

जब जगत नियंता मां शबरी को अपनी व्यथा सुनाते है 
माता सीता का हरण हुआ जब उनको बात बताते हैं

तब मां शबरी ने ऋष्यमूक पर्वत का मार्ग बताया था
सुग्रीव मिलेंगे यहीं प्रभु , जब ये सन्मार्ग दिखाया था

जब राम लखन दोनों भाई सुग्रीव राज्य में पहुंच गए
तब साधु बनकर हनुमान जी , भेद जानने पहुंच गए

तब पवनपुत्र ने पूछ लिया कि आप कहां से आए हैं 
क्या करने को आप यहां इस ऋष्यमूक पर आए हैं

तब राघव ने बता दिया , मैं राम और ये लक्ष्मण है
हो धरती पूरी दैत्य रहित यह दोनों भाई का प्रण है

मां शबरी के कहने पर , सुग्रीव से मिलने आया हूं
सीता की ही खोज हेतु मैं इस पर्वत पर आया हूं

क्षमा प्रार्थी रघुवर मेरे , नहीं आपको जान सका
भगवन सम्मुख खड़े रहे पर भक्त नहीं पहचान सका

राघव बोले हे महापुरुष! क्या आपकी पहचान है 
तब हनुमानजी बोल पड़े यह राम भक्त हनुमान है

©Shyam Pratap Singh मेरे नेत्र सजल हो गए इसे लिखते हुए....

जब मां शबरी के कई बरस की राम प्रतीक्षा पूर्ण हुई
जब मां शबरी की राम दरस पाने की इच्छा पूर्ण हुई

जब मां शबरी के बेर भी जूठे राम लखन ने खाए थे
जब लगा भक्त के साथ स्वयं भगवन ने पुण्य कमाए थे
जब मां शबरी के कई बरस की राम प्रतीक्षा पूर्ण हुई
जब मां शबरी की राम दरस पाने की इच्छा पूर्ण हुई

जब मां शबरी के बेर भी जूठे राम लखन ने खाए थे
जब लगा भक्त के साथ स्वयं भगवन ने पुण्य कमाए थे

क्या होती है भक्ति भावना मां शबरी ने सिखा दिया
कितना प्रेम है भक्तों से जब राघव ने ये दिखा दिया

मानों मां की प्रेम रश्मि चहुओर दिशा में छाई हो
ऐसा लगता मां शबरी ही , स्वयं प्रभु की माई हो

जब जगत नियंता मां शबरी को अपनी व्यथा सुनाते है 
माता सीता का हरण हुआ जब उनको बात बताते हैं

तब मां शबरी ने ऋष्यमूक पर्वत का मार्ग बताया था
सुग्रीव मिलेंगे यहीं प्रभु , जब ये सन्मार्ग दिखाया था

जब राम लखन दोनों भाई सुग्रीव राज्य में पहुंच गए
तब साधु बनकर हनुमान जी , भेद जानने पहुंच गए

तब पवनपुत्र ने पूछ लिया कि आप कहां से आए हैं 
क्या करने को आप यहां इस ऋष्यमूक पर आए हैं

तब राघव ने बता दिया , मैं राम और ये लक्ष्मण है
हो धरती पूरी दैत्य रहित यह दोनों भाई का प्रण है

मां शबरी के कहने पर , सुग्रीव से मिलने आया हूं
सीता की ही खोज हेतु मैं इस पर्वत पर आया हूं

क्षमा प्रार्थी रघुवर मेरे , नहीं आपको जान सका
भगवन सम्मुख खड़े रहे पर भक्त नहीं पहचान सका

राघव बोले हे महापुरुष! क्या आपकी पहचान है 
तब हनुमानजी बोल पड़े यह राम भक्त हनुमान है

©Shyam Pratap Singh मेरे नेत्र सजल हो गए इसे लिखते हुए....

जब मां शबरी के कई बरस की राम प्रतीक्षा पूर्ण हुई
जब मां शबरी की राम दरस पाने की इच्छा पूर्ण हुई

जब मां शबरी के बेर भी जूठे राम लखन ने खाए थे
जब लगा भक्त के साथ स्वयं भगवन ने पुण्य कमाए थे