चांदनी रातें दिन में नहीं रातों में क़रार हैं यहा कितने दिलों के खुलते असरार हैं चांद भी मैफिल सजाकर करता इकरार हैं तभी तो रात का जादू बरकरार हैं बंधा हुआ है समय से, ओस के मोती बनकर रोता हैं तभ काहा जाकर रात के रोशनी में चमक पाता हैं गर्दिश में मोम की तरह पीघलता हों जैसें अंधेरे से चुर चुर ये, चांदणी को ढुंढता जैसे... #p