यह शर्मनाक है कि पूर्व राष्ट्रपति अहमद अंसारी ने एक बार फिर बेतुकी बात करने ना केवल अपनी श्रद्धा मानसिकता का परिचय दिया है बल्कि देश को बदनाम करने का भी काम किया है पहले कई बार अपने पद पर गरिमा के प्रतिकूल व्याख्या दे चुके अहमद अंसारी ने इस बार अमेरिका में आयोजित एक कार्यक्रम में यह कह दिया कि भारत में धार्मिक बहुमत वाली आबादी को राजनीति में एक अधिकार दे दिया गया है उन्होंने यह भी कहा डाला कि देश में मजहब के आधार पर सूटता को बढ़ावा दिया जा रहा है गंभीर बात यह है कि उन्होंने यह सब गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर किया और वह भी एक ऐसे मंच से जिसका आयोजक में इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल नामक संस्था भी शामिल है जिस पर भारत में दंगे करने के साथ-साथ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआईएस के इशारे पर काम करने पर आरोप है अहमद अंसारी उपराष्ट्रपति के साथ कई देशों में भारत के राजदूत भी रह चुके हैं यह कल्पना करना ठीक नहीं है कि उन्होंने अपनी इस सोच के साथ अपने दायित्वों का निर्वाह किया होगा वह लगातार प्रदर्शन भी करते रहे भारतीय विभाजन के सबसे बड़े खलनायक जिन्ना की अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में तस्वीर का उन्होंने यह कहकर बचाव किया था कि यदि कोलकाता में विक्टोरिया मिल एरिया हो सकता है तो फिर एम यू में जिन्ना की तस्वीर क्यों नहीं लगा सकती इस तरह के कोविड-19 मारी के रूप में धार्मिक कट्टरता और आक्रमक राष्ट्रवाद का उल्लेख कर चुके हैं यह भी याद रहेगी अहमद अंसारी ऐसा भी विश्वास करते हैं कि देश का मुस्लिम समुदाय स्वास्थ्य को असुरक्षित महसूस कर रहा ©Ek villain #अहमद अंसारी के विचार #Memories